एक थी काजल – Best sad Love Story In Hindi
काजल बहुत अच्छी थी। अच्छा होना एक क्रिया है, कभी कभी अच्छा न होना भी क्रिया है। कोई भी पूरा अच्छा या पूरा न अच्छा नहीं हो सकता। पर वो मुझे हमेशा अच्छी ही लगती रही थी। तुम नाटक क्यों नहीं करती, मैं पूछता था। करती तो हूँ, वो कहती। हाँ, मैं समझ जाता।
हम जब मिले थे तब धूप थी, मैं उससे नहीं मिला था, बस देखा था। पर मैं इसे ही हमारी पहली मुलाकात के रूप में सम्बोधित करता था। उसे ये याद नहीं था, पर वो मान लेती थी। उसे मुझसे प्यार हो गया था।
पहली मुलाक़ातों में मिलने वाले बातें करें ही, कहाँ ज़रूरी है? मैंने पहली मुलाकात की बातें, आकाश से की थीं। आकाश स्कूल यूनीफ़ार्म पहने हुए था, आसमानी शर्ट। मुझे लगा वो इसी तरह की शर्ट हमेशा से पहनता रहा है इसलिए उसका नाम आकाश है। पर उसने मना कर दिया था, मैंने उसके घर जाकर भी देखा उसने वही शर्ट पहन रखी थी, मैंने अनदेखा करने का नाटक किया। आकाश ने बताया की मेरा और काजल का कोई मेल नहीं है, वो अँग्रेजी जानती है और मैं हिंदी भी सही नहीं बोलता। उसने बताया की वो और काजल कभी एक ही स्कूल में पढ़े थे,
उस स्कूल का नाम हिंदी में था- आनन्द मार्ग! उस स्कूल की यूनिफॉर्म में लाल रंग की शर्ट थी, आकाश ने लाल शर्ट भी पहनी होगी, उसका नाम फ़िर भी आकाश ही रहा, मैं परेशान हो गया। काजल हिंदी भी जानती होगी, मैंने पूछा, हाँ वो अँग्रेजी जैसी हिंदी जानती है, जिनमें हिंदी के संज्ञा-सर्वनाम होते हैं मगर क्रिया और विशेषण नहीं होते।
वो वर्ब और एडजेक्टिव होते हैं। पर आकाश मेरी तरह ही हिंदी बोलता था, और अँग्रेजी वाली हिंदी जानता था। क्योंकि उसने काजल से बात की थी, जब वो सम्पूर्ण अँग्रेजी वाले स्कूल में नहीं गयी थी, मैंने उसकी बात का विश्वास कर लिया। उसने मेरे और काजल के बेमेल होने की बात दोहरायी, मैंने विश्वास कर लिया।
उस रात मैंने सपना देखा, सपने में मछलियां थीं, जिनकी शक्लें आकाश से मिलती थीं। एक सुनहरी मछली भी थी जो अपना नाम काजल बता रही थी, पर मैं उसकी आवाज़ नहीं सुन पा रहा था। अगर काजल की आवाज़ सुनी होती तो शायद उस मछली की भी आवाज़ सुनाई देती। वो टाइटैनिक की हीरोइन के जैसे बोल रही थी, मुझे कुछ समझ नहीं आया। आकाश जैसी मछलियां हिंदी बोल रहीं थीं। बेमेल, बेमेल। मैं झटके से उठा और सपने में मछली देखने की बात माँ को बताई, उसने कहा की ये शुभ संकेत है। मैंने आकाश की बात पर विश्वास करना छोड़ दिया।
पहली मुलाकात की बात फ़िर मैंने राजीव से कही, वो बहुत गोरा था और पढ़ने में भी होशियार। ऐसा मास्टर साब कहते थे, और मेरे बाकी दोस्त भी। उसका चक्कर मनीषा के साथ अभी अभी टूटा था, उसने बताया की गिफ़्ट में उसने मनीषा को राधा कृष्ण की मूर्ति दे दी थी, उनका मिलन नहीं हो पाया था क्योंकि राधा-कृष्ण भी कभी नहीं मिल पाए थे। ये भी बताया की प्यार करने में हिंदी अँग्रेजी का कोई चक्कर नहीं है, अगर तेरे पास पैसा है तो काजल पट जाएगी। वो कभी मेरे घर नहीं गया था,
Best Love Story In Hindi । cute short love story in hindi
जो गए थे वो मुझे ग़रीब समझते थे। पर मैंने सबसे कह रखा था की मेरे पापा के पाँच भाई हैं और सब हरामी हैं, जो जमीन-जगह के लिए झगड़ते हैं इसलिए हमने अपना खपरैल मकान पक्का नहीं कराया है। ये भी बताया था की हमारी जमीन गाँव में बहुत है। मुझे अमीर मान लिया गया था। गरीबी ढांपने के लिए झूठ सबसे अच्छा कम्बल होता है, वो धुआँ भी नहीं दिखने देता, पर इस कम्बल की मरम्मत करती रहनी होती है।
मैं इसकी मरम्मत पैसे खर्च कर के करता था, ये पैसे मुझे मामा भेजते थे। खराब सड़क बनाने के एवज में मेरे पापा का ठेकेदारी लाइसेंस रद्द हो गया था, तब से मामा हर महीने 6000 मेरी माँ को भेजते थे, जो माँ पापा से छुपाकर मुझसे मंगवाती थी। मैं माँ को 5500 ही देता था। बाकी 500 से मैं अमीरी का नाटक किया करता।
राजीव ने मुझे काजल से बात करने को कहा, पर मैंने उसका भरोसा नहीं किया। उसने कहा बात करने से सारा मैटर क्लियर हो जाएगा, पर मैंने कहा पहले मुझे अँग्रेजी सीखनी होगी, ताकि उसके तमाम एडग्जेक्टिव और वर्ब्स को मैं तुरन्त समझ जाऊँ। उसने मुझे रैपिडैक्स की किताब दे दी।
वो किताब मुझे समझ में आने लगी, पर मैं उसके पीछे के पृष्ठों को पढ़ता रहा, उसमें संवाद थे, एक तरफ़ हिंदी दूसरी तरफ़ अँग्रेजी, मैं हिंदी पढ़ता रहा। उन संवादों में एक मिनी थी जो बर्थडे पार्टी में अपने पापा के साथ जाती थी, वहाँ ‘ट्विस्ट’ करती थी, रिटर्न गिफ़्ट लेकर वापस आती थी। मुझे मिनी में काजल नज़र आती थी।
काजल मेरे खपरैल घर के आंगन में रिटर्न गिफ़्ट में मिली पेंसिल रोप कर भाग जाती, उस पेंसिल से एक पौधा उग आया था जिसे मेरी माँ ने उखाड़ कर फेंक दिया। उसने कहा ये ज़हरीला पौधा था जो बारिश की नमी से उग आया था। मैंने उसका विश्वास नहीं किया, पापा बहुत कम बोलने लगे थे, पर मेरे ज़िद करने पर झापड़ मार देते थे। इसलिए मैंने ज़िद नहीं की और विश्वास नहीं किया।
मेरे विश्वास न करने का कोई फ़र्क नहीं पड़ा, वैसे ही जैसे मेरे यूनिफॉर्म की बगल में आये छेद से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा था। मेरे यूनिफॉर्म की पैंट भी गहरी नीली से सफ़ेद होती रही थी, मुझे उसके ऊपर खिसकने का भी भान होता था, मैं पैंट अब कमर से थोड़ा नीचे बाँधने लगा था। मेरे जूते मेरा अँगूठा दबाते थे पर मैं उँगलियाँ मोड़ कर चलने का अभ्यास कर बैठा था। और सीधे चलने का नाटक भी करने लगा था।
पहली मुलाक़ात की बात अब मेरे अलावा दो और लोग भी जानते थे। बस जानते थे अगर इस बात पर कोई लड़ाई हुई होती तो काजल भी जान जाती और शायद ये गर्व का विषय बन जाता। मैं बाहर से बहुत बाहर था और अंदर से बहुत गहरा, मैं बहुत सादा था, काजल बहुत रंगों में दिखती थी।
दूर से, हाँ, बस दूर से। मैंने पहली मुलाक़ात को केवल दो मौकों पर बाहर खड़ा किया था, जिसके अपने अपने मानी आकाश और राजीव ने बना लिए। आकाश की काजल आनन्द मार्ग स्कूल की बेंच पर बैठती थी और फ़िर न दिखने वाले अँग्रेजी स्कूल में, राजीव की काजल में मनीषा थी, जो बहुत गोरी थी। राजीव भी बहुत गोरा था, और होशियार भी। मैंने काजल को तीन बार देखा अलग अलग जगहों पर, जैसे मैं अपनी माँ को घर के हर कोने में देखता था।
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रसोई में, झाड़ू में, चूड़ियों में, गन्दे कपड़ो में, गीले लटके कपड़ो में और बरामदे में भी। पापा को मैंने बस दो बार देखा था, एक बार वो काले बालों में थे और आवाज़ में गर्जन थी, दूसरी बार उनके पैरों में पतलापन था और कंधे झुके हुए थे। उनकी आवाज़ बस झगड़े में सुनाई देती थी, फ़िर माँ भी दिखती थी वो भी झगड़ती थी। मुझे बहुत गुस्सा आने लगा था, मैं दीवारों को सिमटते हुए देखता रहता, छत को आसमान से लगता देखता रहता और छत में चढ़कर काजल को देखता।
वो रंगों में दिखती, गुलाबी, सफ़ेद, कत्था, आसमानी। एक कत्था रंग मेरी शर्ट की छेद पर माँ ने उभार दिया था, मैं उस आसमानी शर्ट को बदलना चाहता था। शर्ट का कत्था रंग काजल के बालों की रिबन से मेल खाता था, वो बहुत लंबी थी, शायद मुझसे भी लंबी इसलिए ठीक ठीक अंदाज़ा लगाना मुश्किल हो गया। मैंने अँग्रेजी के नौ शब्द सीख लिए थे, जो स्कूल में किसी को भी नहीं आते थे, अब मैं काजल को हमारी पहली मुलाकात के बारे में बता सकता था, पर मेरी ज़ुबान को मेरी शर्ट का कत्था छेद फंदा बनकर गिरा देता था।
पहली मुलाक़ात में धूप थी, वो अब गुनगुनी होने लगी थी, बक्से से नीला स्वेटर निकाल लिया गया। छेद अब स्वेटर में छुप सकता था। काजल नीला कार्डिगन पहनने लगी थी, मैं उसके पास जाकर काँपने लगा। उसने मुझे देखा भी नहीं, महज़बीं ने देखा और हँस पड़ी, पर काजल ने नहीं देखा फ़िर भी हँस पड़ी।
ये हमारी दूसरी मुलाक़ात थी पर मैंने इसे ख़ारिज कर दिया। मैं लाइब्रेरी की तरफ़ मुड़ गया। महज़बीं को मैंने गाली दी, वो हँसती रही। घर जाते हुए मैंने महज़बीं से कहा की वो मेरी बहन जैसी दिखती है, वो चुप हो गयी। मेरा काँपना रुक गया, उसने मुझे थप्पड़ मारा, मैं हँस पड़ा। ये बात मैंने अपनी माँ को बताई वो भी हँस पड़ी, बहुत दिनों के बाद वो हँसी थी।
उसकी चूड़ी भी हँस पड़ी, और पापा की परछाई ये देखकर वापस बाहर चली गयी। पापा के झुके कंधे मुझे अपनी पीठ पर महसूस होने लगे थे, अचानक वो बूढ़े हो गए। हर दिन वो बूढ़े होते गए। बूढा होना बहुत कष्ट देता है, वो हर शाम वही कष्ट पीकर आते और घर की दीवारों पर छिड़क देते। मैं और माँ वो कष्ट आँखें बंद कर के देखते, फ़िर सुबह भूल जाते।
हम डरने लगे थे, अँधेरे की परिधि पर हमने बल्ब जला दिए पर अँधेरा रोज आता था और दीवारों पर नाचता था। मैं पापा पर गुस्सा होना चाहता था, माँ गुस्सा हो जाती थी। पापा कुछ नहीं देखते न समझते बस कष्ट छिड़कते रहते। मैं इसे किसी फ़िल्म का दृश्य मानने लगा था, जिसमें The End से पहले हम पक्के मकान में रहने लगे और साथ मे काजल भी, फ़िर हमने गाने गाए और दो फूल आपस मे टकरा गए।
महज़बीं अब मुझपर नहीं हँसती थी। एक दिन लायब्रेरी में वो मुझे देखकर मुस्कुरा दी थी। आकाश ने उसे देखकर काजल की याद दिलायी, मैं ख़ुश हो गया, दो फूलों का टकराना याद आया और मैं महज़बीं से काजल के बारे में बात करने लगा, पर पहली मुलाक़ात के बारे में नहीं बताया। उसने मुझे बताया की काजल अँग्रेजी वाली हिंदी नहीं बोलती वो साफ़ भी नहीं बोलती। उसके शब्द अधूरे हैं और उसने साइकल चलाना भी अभी अभी सीखा है। अगले दिन काजल को राजीव रास्ते में देखा वो अपनी साइकल की चेन से लड़ रही थी, राजीव ने उसके साइकल की चेन चढ़ाने की कोशिश की। उसके हाथ काले हुए जा रहे थे, पर वो लगा रहा।
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उसके लिए भी मुलाक़ात में बात करना कोई ख़ास ज़रूरी नहीं था। साइकल की चेन बहुत जटिल थी, और कमज़ोर भी वो चढ़ी नहीं पर टूट गयी। राजीव ने उसे भोला साइकल दुकान में जमा करा दिया। काजल ने उसे शाम को साथ ले जाने को कहा, राजीव ने मना नहीं किया। स्कूल जाने में देरी हो रही थी सो वो जल्दी से राजीव से अगले दिन साइकल वापस करने को कह कर चली गयी।
क्लास में ये बात राजीव ने मुझसे कही, और मुँह से अजीब आवाज़ निकाली। मैंने उसके हाथों में लगे काले ग्रीस को अपनी शर्ट से पोंछ लिया, ऐसा मैंने क्यों किया मुझे नहीं पता। राजीव ने मुझे वो साइकल काजल को लौटाने को कहा, इससे वो मुझसे बात करेगी, ये भी कहा। मैंने ख़ुद को बहुत ग़रीब देखा, मेरे पास भोला साइकल दुकान को देने के लिए 40 रुपये नहीं थे।
ये बात मैंने बहुत डरते सकुचाते राजीव से कही, राजीव ने मुझे 100 रुपये दिए और अगले महीने लौटाने को कहा। मैंने उसे बहुत श्रद्धा से देखा और घर जाते समय साइकल लेकर घर चला गया। लेडीज़ साइकल देख कर माँ ने बहुत सवाल किए, मैंने उसे बताया ये महज़बीं की साइकल है, पर वो नहीं मानी।
मेरी शर्ट में ग्रीस लगा था माँ का ध्यान उसपर चला गया और उसने मुझे थप्पड़ भी लगा दिया। ये उसकी नज़र में नुकसान था। मेरे लिए ये काजल की ज़िंदगी का अंश था जिसपर मैंने अधिकार कर लिया था। साइकल लौटाते वक़्त धूप है, धूप में ठण्ड है, ठण्ड में काजल है। मैं अब नहीं काँप रहा, इस वक़्त का इंतज़ार मुझे गर्म किये है।
काजल के कार्डिगन का एक रेशा लटका हुआ है, मेरे शर्ट की छेद को स्वेटर ने ढाँप रखा है, मैं बहुत घबराया हुआ हूँ। काजल चश्मा लगाती है, मेरी आँखें दुखती हैं, मेरे माथे के बीचों बीच टीस उठती है। काजल साइकल ले लेती है, सौ का एक नोट उसकी हथेलियों में फंसा है, मैं उसे हथेली खोलने से मना करता हूँ, उसकी आवाज़ में चमक है, जो फ़ीकी होती जा रही है, वो ज़बरदस्ती करती है पर मैं पैसों के बदले उसका साथ मांग लेता हूँ।
उसकी आवाज़ में गुस्सा है, थोड़ी दूर बैठे मेरे दोस्तों में हँसी है, मैं अब घबराया हुआ नहीं हूँ, काजल हिंदी बोल रही है। मैं बस उसके साथ उसके मोहल्ले तक चलने को कहता हूँ, वो मान जाती है, फ़िर आगे चलने लगती है।
उसकी तीन सहेलियां उसके और आगे चल रही हैं, मुझे अच्छा लग रहा है कि काजल को साइकल चलाना ठीक से नहीं आया, वरना वो उसमें बैठकर बहुत आगे लुढ़क जाती। बहुत आगे एक ढलान है, उसकी सहेलियां उस ढलान पर गायब हो जाती हैं, काजल मुझे घूर कर देखती है। मैं मुस्कुराता हूँ। मेरा उससे हँसी ठट्ठा करने का मन है। कुछ अटपटा कहने का मन है जिसे कहने से पहले मैं कुछ नहीं सोचना चाहता। मैं अब उसके बगल में चलने लगा हूँ, साइकल की पैडल घूम रही है, मैं उसकी आँखों में देखना चाहता हूँ, जो चश्मे की वजह से बड़ी दिखती हैं।
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उसका रंग मिट्टी से मिलता है, मैं उस मिट्टी में चित्र बनाने लगता हूँ। लड़कियों के चित्र, जिनकी शक्लें काजल जैसी हैं। आगे के लंबे रास्ते पर काजल ही काजल हैं, और वो मेरे बगल में चल रही है। उसके बगल में एक शिव का मंदिर है, मैं इस मोहल्ले में कई बार आया हूँ, पर उसने प्रणाम कर के उस मंदिर को जैसे अभी अभी खड़ा किया है। मैं भगवान में नहीं मानता फ़िर भी सर झुकाता हूँ। वो मुस्कुराती है, रास्ते की काजलें भी मुस्काती हैं। वो काली नही है फ़िर भी उसका नाम काजल है, आकाश का आसमानी शर्ट उसका नाम नहीं है।
उसका घर तीन गलियां मुड़ने के बाद आता है, उसका घर पतली गली के अंदर है। वो मुझे बताती है, मुझे पहले से पता है। मैं उसे गली में छोड़ आगे बढ़ जाता हूँ। आगे मैदान है वहाँ मनीष क्रिकेट खेल रहा है, रवि बॉलिंग कर रहा है, उन्होंने मुझे देख लिया है। मैं सिर झुकाकर मन्दिर को याद करता हूँ।
स्कूल की दीवारें मुड़ी हुई हैं, वक्र के आकार की हैं। आज बहुत आकर्षक दिख रही हैं। स्कूल में शोर है, मेरा नाम काजल के साथ कई बार गूँजा है। वो प्रेयर असेम्बली में नहीं दिखी है, मैं उसके क्लास की तरफ़ की सीढ़ियां चढ़ रहा हूँ,
वो घुटनों में सिर घुसाए बैठी है। वो हिल रही है, उसके बगल में महज़बीं है वो मुझे देखकर भौहें सिकोड़ती है। मैं काजल को देखता हूँ, वो मुझे नहीं देखती। मैं अपने घुटनों में भार महसूस करता हूँ, उन्हें ले जाकर काजल के घुटनों में टिकाना चाहता हूँ, पर वो बहुत लंबी है और सीढ़ी पर ज़्यादा जगह नहीं है। मैं उसका नाम लेना चाहता हूँ, पर वो सुनेगी नहीं ऐसा मानकर नहीं लेता। महज़बीं मुझे वहाँ से चले जाने को कहती है, काजल रोती रहती है, मैं हिलता भी नहीं। मुझे माँ की याद आती है, अक्सर नींद टूटने पर मैं उसे ऐसे ही हिलते हुए देखता हूँ, और उस समय भी कुछ नहीं कह पाता।
हमारे अपने अपने दायरे हैं, जिसमें माँ का पूरा दखल है पर मैं उसके दायरे में नहीं जाता, मैं बहुत स्वार्थी हूँ। मुझे पानी मे बस पानी पसन्द है नमक नहीं। बहुत देर तक रोने से आँखें सूज जाती हैं, माँ इसे नींद के बाद की सूजन बोलती है। पापा की आँखें हर शाम सूज जाया करती हैं, मेरी आँखों में काजल की आँखें सूज रही हैं।
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धूप ठण्डी होती जा रही है, मैं फ़िर से काँपने लगता हूँ, महज़बीं मुझे गालियाँ बकती है, काजल सिसक कर मुझे देखती है, मुझे माँ याद आ रही है। उसकी आँखें आधी सूजी हैं, सूजन में अभी बहुत पानी भरा है, नमक वाला पानी मुझे बिल्कुल नहीं पसन्द। मैं मुड़कर चला जाता हूँ। दीवारें सीधी बन गयी हैं, रास्ते पर काजल रो रही है, मैं घर जाता हूँ, घर पर माँ रो रही है…पापा सो रहे हैं। मोहल्ले की बहुत सी औरतें रो रही हैं, माँ बिलखने लगी है, ये उसका छुपकर रोना नहीं है, ये सबको बता देने वाला रोना है।
पापा मर गए हैं। मुझे माँ का रोना झूठा लगता है, उसका रोना बेकार है, मुझे उनका झगड़ा याद आता है, मैं माँ को धकेल कर गिरा देता हूँ और चीखने लगता हूँ…काजल काजल काजल! मैं राधा-कृष्ण की तस्वीरें फाड़ देता हूँ, सब खामोश हो जाते हैं। माँ मुझे पीटने लगती है, मैं पिट कर श्मशान जाने लगता हूँ, श्मशान में एक पूरा पेड़ अपने ही जैसे किसी के चिता पर लकड़ी बन जाने के कारण दुःखी है, वो रोने जैसा दिखता है। अपने ही जैसे किसी लाश को जलता देख कर भी कुछ लोग रोते हैं। वो लाश मेरे पापा हैं, मैं नहीं रोता।
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