Gautam Buddh Stories In Hindi । भगवान बुद्ध की कहानियां

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नमस्ते दोस्तों आज के इस लेख में आप सभी का सवागत है। आज के इस लेख में आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा क्योंकि आज के इस लेख में आप सभी Gautam buddh stories in hindi में जानेंगे और साथ ही साथ Gautam buddh के जीवन से जुड़ी कुछ अहम बाते भी जानेंगे।

Gautam buddh जी को महात्मा बुद्ध, भगवान बुद्ध, सिद्धार्थ व शाक्यमुनि नाम से भी जाना जाता है। Gautam buddh का जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के एक राजा जिनका नाम शुद्धोधन था, उनके घर में हुआ था। Gautam buddh संसार के कष्टों को दूर करते थे और साथ ही साथ उन्होंने जीवन का रहस्य जानने के लिए अपने घर को छोड़ दिया था। इसलिए वह ‘बौद्ध’ नाम से प्रसिद्ध हो गए थे।

Gautam buddh का बचपन बहुत ही अमीरी में बीता। और वह बहुत अच्छा जीवन बिताते थे। लेकिन वह कभी भी संतुष्ट नहीं रहते थे। जब उन्होंने अपने घर से निकलकर गरीबी व बीमारी देखी, तो सत्य की खोज करने के लिए उन्होंने अपने घर को छोड़ दिया। और फिर उन्होने अपने जन्म के सिध्दान्त को बदल दिया।

जब वो दुनिया में सत्य व ग्यान बांटने के लिए निकले तो उनके जीवन में ढेरों परिवर्तन आए। और उनके जीवन के इन्हीं कठोर परिवर्तनों से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

Gautam Buddh Stories In Hindi
Gautam Buddh Stories In Hindi

Gautam buddh stories in hindi

नीचे Gautam buddh की कुछ प्रेरणादायक कहानियाँ दी गई है जिसे पढ़कर आप Gautam buddh के बारें में बहुत कुछ जान सकते हैं और साथ ही साथ आप भी प्रेणा ले सकते हैं।

धैर्य और परिश्रम

एक बार Gautam buddh अपने शिष्यों के साथ किसी गांव में लोगों को प्रवचन देने जा रहे थे। गांव के रास्ते में Gautam buddh को जगह-जगह बहुत सारे गड्ढे़ खुदे हुए मिले। Gautam buddh के एक शिष्य ने उन गड्ढों को देखकर कहा कि “आखिर जगह-जगह पर इस तरह के गड्ढे़ क्यो खुदे हुए है?

Gautam buddh ने कहा कि पानी की तलाश में किसी इन्सान ने यह सब गड्ढे़ खोदे है। अगर वो गंभीरता से एक ही जगह पर गड्ढे़ खोदता तो उसे पानी ज़रूर मिल जाता। लेकिन वह एक जगह गड्ढ़ा खोदता और उसे जब पानी नहीं मिलता तो वो दुसरी जगह गड्ढ़ा खोदने लगता, फिर तीसरी जगह गड्ढ़ा खोदने लगता। इसी वजह से सड़क पर इतने सारे गड्ढे़ खुदे हुए है।

Gautam buddh की इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि इन्सान को परिश्रम करने के साथ साथ बहुत सारा धैर्य भी रखना चाहिए। तभी उसे सफलता प्राप्त होगी।

अमृत की खेती

एक बार Gautam buddh दान के लिए एक किसान के पास पहुंचे। Gautam buddh को देखकर किसान बोला “मैं हल जोतता हूं और तब खाता हूं। तुम्हें भी हल जोतना चाहिए और बीज बोना चाहिए और तब खाना खाना चाहिए।”

Gautam buddh ने कहा- “मैं भी खेती ही करता हूं।” Gautam buddh की इस बात पर किसान बहुत आश्रय चकित हो गया और कहा “मैंने ना तो तुम्हारे पास हल देखा और ना ही बैल देखा। और ना ही खेती का कोई स्थल देखा। तब आप यह कैसे कह सकते हैं कि आप भी खेती करते है। क्या आप इस बात को सपषट रूप से समझा सकते हैं?

Gautam buddh ने कहा “मेरे पास श्रद्धा का बीज, तपस्या रूपी वर्षा और प्रजा रूपी जोत और हल है। विचार रूपी रस्सी है, स्मृति और जागरूकता रूपी हल का फल और पानी है।

मैं वचन और कर्म में गम्भीर रहता हूं। मैं अपनी इस खेती को बेकार घास से मुक्त रखता हूं और आनंद की फसल काटने का संघर्ष करता रहता हूं। इसी प्रकार मैं अमृत की खेती करता हूं।

Gautam buddh की इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि इन्सान को अपने अन्दर तपस्या,श्रद्धा, प्रजा और अच्छे विचार का बीज बोना चाहिए।

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दान की महिमा

एक बार Gautam buddh पाटलिपुत्र पहुंचे। तो हर इन्सान अपनी हैसियत के अनुसार उन्हें तोहफे देने की प्रक्रिया करने लगा। पाटलिपुत्र के राजा बिंबिसार ने भी उन्हे कीमती हीरे और मोती का हार दिया। Gautam buddh ने सबके तोहफों को स्वीकार किया।

इसी बीच एक बुढ़िया लाठी लेकर वहां आई। Gautam buddh को प्रणाम किया और बोली, “Gautam buddh जी, जिस समय आपके आने का सुना, उस समय मैं ये अनार खा रही थी। मेरे पास कोई दूसरी चीज़ ना होने की वजह से मैं इसी फल को ही ले आई। मगर मुझे यह भी डर है कि आप मेरी यह तुच्छ भेंट स्वीकार करेंगें या नहीं। अगर आप इसे स्वीकार कर लेते हैं तो मैं अपने आपको बहुत ही ज़्यादा भाग्यशाली समझूंगी।”

फिर Gautam buddh ने अपने दोनों हाथों से उस तोहफे को स्वीकार कर लिया।

राजा बिंबिसार इस मनज़र को देखकर बहुत ही ज़्यादा आश्रय चकित रह गए और उन्होंने Gautam buddh से कहा कि “Gautam buddh, क्या मैं आपसे एक प्रश्न पूछ सकता हूँ।” Gautam buddh ने कहा “हाँ ज़रूर पूछें।”

राजा ने कहा कि “हम सबने आपको इतने कीमती और बड़े-बड़े तोहफे दिए जिन्हें आपने एक हाथ से लिया। लेकिन इस बुढ़िया ने आपको जो तोहफा दिया वो आपने अपने दोनों हाथों से लिया ऐसा क्यों?”

यह सुनकर Gautam buddh मुस्कराए और बोले, “राजा! इसमे कोई झूठ नहीं है कि आप सबने बहुत ही ज़्यादा बहुमूल्य तोहफे दिए हैं लेकिन यह सब आपकी संपत्ति का दसवां हिस्सा भी नहीं है। आप सबने यह तोहफे दान और गरीबों की भलाई के लिए नहीं दिए है।इसलिए आपका यह दान “दान” की श्रेणी में नहीं आता है।

इसके अलावा इस बुढ़िया ने अपने मुंह का निवाला मुझे दे दिया। भले ही यह बुढ़िया गरीब है लेकिन इसे संपत्ति की कोई भी लालच नहीं है। इसी वजह से मैंने यह दान खुले हृदय से व दोनों हाथों से स्वीकार किया है।

Gautam buddh की इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि इन्सान को दान हमेशा ऊपर वाले को राज़ी करने के लिए देना चाहिए और गरीबों की भलाई करनी चाहिए।

सब्र की महत्ता

Gautam buddh की यह कहानी इन सभी कहानियों से बहुत ज़्यादा पुरानी है। यह उस समय की बात है जब Gautam buddh पुरे भारतवर्ष में घुम-घुम कर अपने बौद्ध धर्म की शिक्षा को फैला रहे थे। वह अपने शिक्षकों के साथ अपने धर्म के बारें में प्रचार कर रहे थे। इसी बीच उन्हें बहुत प्यास लगी।

प्यास को बढ़ता हुआ देखकर, उन्होंने अपने एक शिष्य से पानी लाने को कहा। शिष्य जब गाँव में पानी लेने पहुंचा तो उसे वहाँ एक नदी दिखीं। जिसमें काफी लोग अपने कपड़े साफ कर रहे थे और कुछ लोग अपने गायों को नहला भी रहे थे। इसी वजह से नदी का पानी बहुत गंदा था।

शिष्य ने नदी का यह हाल देखकर Gautam buddh के पास खाली हाथ जाना ही ठीक समझा। Gautam buddh को बहुत ज़्यादा प्यास लगी थी तो फिर उनहोंने अपने दूसरे शिष्य को पानी लाने को कहा। वह शिष्य उनके लिए मटके में पानी भर कर के ले आया।

यह देखकर Gautam buddh बहुत ही ज़्यादा आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने अपने शिष्य से पूछा कि “यह पानी तुम कहाँ से ले आए? शिष्य ने कहा कि “गुरूजी, उस नदी का पानी सच में बहुत ही ज़्यादा गंदा था। लेकिन जब वहां से सब लेग अपना अपना काम खत्म करके चले गए। तो मैंने वहां कुछ देर बैठ कर पानी में मिली मिट्टी को नदी के एकदम नीचे में जाने का इंतज़ार किया। जैसे ही मिट्टी नीचे बैठी वैसे ही नदी का पानी एकदम साफ हो गया। तो वही पानी मैं ले आया हूं।”

Gautam buddh अपने शिष्य की यह बात सुनकर बहुत ही खुश हो गए। और अन्य शिष्यों को शिक्षा देते हुए कहा कि “हमारा जीवन भी एक नदी के जल जैसा ही है। जीवन में अच्छे काम करते रहने से हमारा जीवन हमेशा साफ और सुथरा बना रहता है। लेकिन बहुत बार हमारे जीवन में ऐसे भी पल आते है जब हमारा जीवन दुख और समस्याओं से भर जाता है। ऐसे में हमें हमारी ज़िन्दगी ही बेकार लगने लगती है।”

Gautam buddh की इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि हमें जीवन में दुःख और बुराईयों को देखकर अपनी हिम्मत नहीं तोड़नी चाहिए। और हमेशा धैर्य रखना चाहिए। हमारे जीवन की समस्याएँ खुद ही धीरे-धीरे खत्म हो जाती हैं।

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लोगो ने यह भी पूछा-(FAQ)

Q. Gautam Buddh की पूरी कहानी क्या है?

Gautam Buddh का जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था। वो एक कोलीय वंश से थीं। Gautam Buddh की माता का निधन इनके जन्म के सात दिन बाद हो गया था। Gautam Buddh का पालन पोषण महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया था।

Q. Gautam Buddh ने भगवान को क्यों नकारा?

Gautam Buddh ने भगवान को नकारा क्योंकि उन्हे ऐसी श्रद्धा करना ज़रूरी नही लगी। कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हे लगता हैं कि पृथ्वी को बनाने वाले के मूल को जानने के लिए ऊपर वाले में विश्वास ज़रूरी हैं। लेकिन विज्ञान ने पृथ्वी को बनाने वाले का रहस्य, ऊपर वाले की कल्पना किये बिना समझाया हैं।

Q. Gautam Buddh को मारने कौन आया था?

Gautam Buddh पर भी हमला किया गया था। Gautam Buddh को अंगुलिमाल मारने आया था। लेकिन वह कोई डाकू नहीं था। बल्कि वह एक भटका हुआ विद्वान ब्राह्राण था।

Q. क्या Gautam Buddh भगवान में विश्वास रखते थे?

Gautam Buddh किसी भी तरह के देवता या भगवान में विश्वास नहीं रखते थे।

Q. Gautam Buddh किसका ध्यान करते थे?

Gautam Buddh Vipassana का ध्यान करते थे। जो एक प्राचीन ध्‍यान की विधि है। इसका मतलब होता है कि देखकर लौटना। इसे आत्‍म निरीक्षण और आत्‍म शुद्धि के लिए सबसे बेहतरीन माना गया है। हज़ारों साल पहले Gautam Buddh ने इसी ध्‍यान की विधि के ज़रिए बुद्धत्‍व हासिल किया था।

निष्कर्ष-

तो दोस्तों आज के इस लेख में आप सभी ने Gautam buddh stories in hindi में जाना। और साथ ही साथ Gautam buddh के जीवन से जुड़ी कुछ अहम बाते भी जानी।

आशा करते हैं कि आप को यह लेख पसंद आया होगा और Gautam buddh stories in hindi में पढ़के आपको बहुत कुछ जानने व सीखने को मिला होगा।

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