Company meaning in Hindi | कंपनी का मतलब, परिभाषा और अर्थ

कंपनी क्या है (Company Meaning In Hindi), कंपनी के प्रकार, कंपनी की विशेषताएं, company kya hai in hindi, company kya hoti hai, company kya hai puri jankari –

हैलो दोस्तों आज के इस लेख में आप सभी का सवागत है। आज के इस लेख में आप जानेंगे company kya hai puri jankari। आज के समय में job को लोग कम ही पसंद करते हैं। इसलिए सब बिज़नेस की ओर जा रहे हैं और खुद का बिज़नेस करने का सोच रहे हैं।

अगर आपका small capital business हो या फिर large capital business हो, दोनों ही केस में आपको कुछ महत्वपूर्ण बातो का ध्यान रखना ज़रूरी होता है। अगर कोई इन्सान बिज़नेस की शुरुआत ही करने जा रहा होता है तो उसे बिज़नेस से जुड़ी कुछ ज़्यादा जानकारी नही होती है। जिसकी वजह से उसे बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ जाता है।

इसलिए आपको इस लेख में company kya hai puri jankari मिलेगी जिससे आप को अपने बिज़नेस से जुड़ी कोई भी परेशानी का सामना ना नही करना पड़ेगा और आपको company के बारे में पूरी जानकारी भी मिल जाएगी।

Company Meaning In Hindi – company kya hai पूरी जानकारी?

Company लैटिन भाषा के कम्पैनिस शब्द से लिया गया है। जिसका अर्थ है साथ-साथ। तो इसका मतलब यह हुआ, कि यह काफी सारे व्यक्तियों का संघ होता है जो साथ-साथ रह कर काम करते हैं। Company का शाब्दिक अर्थ समीती आदी होता है। Companies Act 2013 के अन्दर Comapny का अर्थ है क़ानूनी और प्राकृतिक या इन दोनों के मिश्रण से व्यक्त्यिओ का समूह जो commercial और Industrial enterprise को करने और चलाने के लिए बनाया जाता है।

Company क़ानूनी रूप से निर्मित एक artificial व्यक्ति के रूप में काम करती है जिसकी वजह से इसका संभव भी अलग होता है। इसका यह मतलब हुआ कि व्यक्ति के आने या फिर company से चले जाने पर company को कोई फर्क नहीं पड़ता है। Company पहले की तरह ही काम करती हैं।

कंपनी का अर्थ

कंपनी शब्द भारत का नहीं है ये लैटिन भाषा से लिया गया है। जिसमें Com का मतलब होता है “साथ में “ और pany का मतलब होता है “रोटी। पहले के समय में जिसका मतलब था “लोग जो साथ में अपना खाना खाते है” और आज के समय में इसका मतलब होता है “कुछ लोगो का समूह है जो एक साथ जुड़े हुए है एक ही काम करने के लिए।” कंपनी में profit हो या loss हर member को उसमें बराबर का हकदार होना पड़ता है।

कम्पनी लोगों के समूह से बनती है जिसका उददेश्य केवल profit कमाना होता है। हर एक इन्सान कंपनी में कुछ capital यानि कि कुछ राशि इन्वेस्ट करते है जो कि शेयर में डिवाइड कर दी जाती है। और उस शेयर को वो शेयर भी कर सकते है। जो शेयर का मालिक होता है उन सबकी liability लिमिटेड होती है। एक कंपनी कभी भी लॉ के द्वारा खत्म की जा सकती है। कंपनी में लोगो की संख्या बहुत ज़्यादा होती है इसलिए इसे फर्म और पार्टनरशिप नहीं कहा जाता है। केवल कम्पनी ही कहा जा सकता है

कंपनी को लॉ के द्वारा बनाया गया है। और लॉ ही नेकंपनी को खुद की एक पहचान दी है। जो हमारे भारत के एक्ट में यानी कम्पनीज़ एक्ट 2013 में कंपनी रजिस्टर होगी वही कम्पनी मानी जयगी।

कंपनी की परिभाषा-

“एक कम्पनी लोगों का समूह है जो साथ में capital को जमा करती है एक fund के रूप में और किसी एक निश्चित और समान्य कार्य के लिए उसका इस्तेमाल करती है। जो सदस्य इसमे अपनी रीशी लगाते हैं उन्हे members कहा जाता है। Member का उसके capital के उतने ही भाग पर हक होता है जितने का उसने share लिया होता है।”

members fund के लिए केवल पैसा ही नही बल्कि कोई ज़मीन या अन्य क़ीमती चीज़ को भी contribute कर सकते हैं। जो पैसा members के द्वारा contribute होता है उसी को capital कहा जाता है। और capital के भाग को share कहा जाता है। उस पूरे contribution को कम्पनी एक समान्य कार्य में लगाती है और जो भी profit होते हैं उसे सब आपस में बाँट लेते हैं और loss में भी ऐसा ही किया जाता है।

कम्पनी का हर एक member अपने shares को किसी भी समय कही भी transfer कर सकता है।अगर हम लोग कम्पनी का उदाहरण देखें तो google, Microsoft, samsung आदि ये सब कम्पनी ही है। कम्पनी के सारे नियम व क़ायदे Comapnies Act 2013, section 2(20) के अन्तर्गत आते हैं।

इसी ऐक्ट के द्वारा यह परिभाषा बताई गई है कि- “एक कम्पनी का रजिस्ट्रीशन अगर इस ऐक्ट के अन्तर्गत हो रहा है या फिर अन्य पहले के ऐक्ट के अन्तर्गत हो रहा हो तो उसे कम्पनी माना जाएगा।”

अगर आपकी कम्पनी Comapnies Act 2013 के अलावा किसी और पुराने ऐक्ट के अन्तर्गत रजिस्टर है तो तब भी वो कम्पनी मानी जाएगी। Comapnies Act 2013, के पहले जो ऐक्ट थे वो इस प्राकार है-

  • The companies act,1956
  • The Indian companies act, 1913
  • The Indian companies act, 1882
  • The Indian companies act, 1866

कम्पनी के कार्य-

सबसे पहले कम्पनी के ऑफीसर के द्वारा कम्पनी के कार्यो को जानते है-

कम्पनी में cheif executive officer, cheif operating officer,chief financial officer, chief technology officer,chief marketing officer chief legal officer होते हैं जो कि board of directors के द्वारा चुने जाते हैं

कंपनी के ऑफिसर ये ध्यान रखते हैं कि कंपनी अच्छे से ऑपरेट करें और कंपनी के दिन प्रतिदिन के मामलों को देखते है। जैसे कि records को बनाना,किसी को काम पे रखना, किसी को काम से निकालना, काम देना आदि। हर officer का कार्य अलग-अलग होता है।

अब Manager के द्वारा कम्पनी के कार्यो को जानते है-

एक कम्पनी में senoir manager, business development manager, project manager आदि manager होते हैं। Manager का काम होता है अपने employees को काम करने का तरीका बताना उन्हे guide करना। वे अपने employee की टीम को अच्छा से organized करता है ताकि वे सब अच्छे से काम कर सके।

Manager अपने employees को motivate करते हैं और कम्पनी के resources का management करते हैं।

कम्पनी के प्राकार-

1.निगमन के आधार पर( on the basis of incorporation)

  • चार्टर्ड कंपनी (Chartered company)- ये वो कम्पनी होती है जो पहले किसी राजा या रानी के द्वारा चार्टर्ड पास कर के बनाई जाती थी। आजकल ये कंपनियां ना ही बनती हैं और ना ही ये कंपनियां भारत में पाई जाती हैं। 
  • विधान के द्वारा निर्मित कंपनी (Statutory company)- ये कम्पनी वो कम्पनी होती है जीन कम्पनी का कम्पनी बनने से पहले एक विशेष ऐक्ट legislature से पास हुआ हो।
  • पंजीकृत कम्पनी (registered company)- ये कम्पनी वो कम्पनी होती है जो Indian company act 2013 के अन्तर्गत या फिर इससे पहले किसी भी कम्पनी ऐक्ट के तेहेत रजिस्टर की गई हो।

2.मेम्बर के आधार पर (on the basis of member)

  • नीजी कंपनी (private company)- इस कम्पनी में कम से कम दो और ज़्यादा से ज़्यादा 200 मेम्बर हो सकते हैं।
  • सार्वजनिक कंपनी (public company- इस कम्पनी में कम से कम सात और ज़्यादा से ज़्यादा मेम्बरो की कोई लिमिट नहीं है।

3.स्वामित्व के आधार पर( on the basis of ownership)

  • सरकारी कम्पनी ( government companies)- ये कम्पनी वो कम्पनी होती है जिनका 51% का share government का होगा। सारा नियंत्रण central या फिर state government का हाथों में होता है।
  • गैर सरकारी कम्पनी ( government companies)- इस कम्पनी के 51% से कम के share कम्पनी के होते हैं। चाहे वो state government हो या फिर central government।

4.राष्ट्रीयता के आधार पर ( on the basis of nationality)

  • भारतीय कम्पनी (Indian company)- यह वो कम्पनी होती है जो लॉ के द्वारा भारत में रजिस्टर हुई हो और वो कम्पनी भी भारत में हो।
  • विदेशी कंपनी (foreign Company)- यह वो कम्पनी होती है जो भारत के बाहर रजिस्टर हुई होती है।

5.नियंत्रण के आधार पर( on the basis of Control)

  • अधिकार वाली कंपनी (holding Company)- जिस कम्पनी का direct या फिर indirect अधिकार किसी और कम्पनी पर हो। उसे अधिकार वाली कंपनी कहते हैं।
  • सहायक कंपनी (subsidiary Company)- जो कम्पनी अधिकार की जा रही हो किसी और कम्पनी के द्वारा। उसे सहायक कंपनी कहते हैं।

Company की विशेषताएं-

कम्पनी अपने नाम से property रख सकती है, किसी के साथ contract कर सकती है और दूसरों पर मुकदमा कर सकती है और दूसरे भी Company पर मुकदमा कर सकते हैं। एक कम्पनी का जीवन अनन्त होता है। Company के जीवन पर दिवालियापन आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

Limited Company के मेम्बर की liability उनके द्वारा लिए गए share तक अथवा उनके द्वारा दी गई गारंटी तक सीमित रहती है। Public Limited Company के share आसानी से transfer हो जाते हैं। स्कंध् विनिमय के माध्यम से इन shares को खरीदा और बेचा जा सकता है।

Public Company के मेम्बर की संखया बहुत ज़्यादा होती है। तो हर कोई मेम्बर कम्पनी के दिन-प्रतिदिन के प्रबंधन में हिस्सा लेने में असमर्थ रहता है। कम्पनी Boards of Directors के द्वारा managed की जाती है। जिसमें संचालकों को members के द्वारा चुना जाता है। अत: कम्पनी की ownership उसके प्रबंध से अलग होती है।

कम्पनी का रजिस्ट्रीशन कैसे होता है-

कम्पनी के नाम का चुनाव करना –

कम्पनी के नाम में बहुत ज़्यादा वज़न होता है। क्योंकि कम्पनी का नाम ही बिज़नेस की पहचान होता है। हर एक इन्सान कम्पनी को उसके नाम से ही याद रखता है। कम्पनी का नाम सोचने के लिए आपको इन महत्वपूर्ण बातो को ध्यान में रखना चाहिए-

  1. कम्पनी का नाम सबसे हटकर हो और किसी अन्य कम्पनी से नाम से मिलता जुलता ना हो।
  2. कम्पनी का नाम आसान होना चाहिए और आसान भाषा में होना चाहिए। जिससे की वो हर किसी के समझ में आए
  3. कम्पनी का नाम लम्बा नही होना चाहिए।
  4. एक नाम की मौजूद कम्पनी का नाम फिर से दुबारा नहीं रखा जा सकता।
  5. कम्पनी का नाम चुनने के लिए आप Ministries of Corporate Affairs (M.C.A) की website से मदद ले सकते हैं।

कम्पनी के नाम का रजिस्ट्रीशन-

कम्पनी के नाम की approval और रजिस्ट्रीशन के लिए MCA की website में जा कर एक prescribed form भरना होता है। और उस form में कुछ जानकारी भरनी होती है। जैसे कि- कम्पनी का नाम। Director और Partner के बीच का share ratio कितना है। Share Capital कितना है।

Digital certificate प्राप्त करना- आपको Digital certificate को सरकारी नियुक्त सेवा प्रदाता से प्राप्त करना होता है। फिर उसके बाद आपको DIN के लिए आवेदन करना होता है।

Company Incorporation- इसमे आप PAN, TAN और अन्य regulatory formalities के रजिस्ट्रीशन के लिए आवेदन कर सकते हैं।

कम्पनी के रजिस्ट्रीशन के लिए कौन-कौन से कागज़ लगते हैं-

Photo ID proof / Address proof- रजिस्ट्रीशन के लिए सबसे पहले आपको Photo ID या फिर Address proof लगाना होता है। जैसे कि -Driving licence,Adhar card,Electricity bill,Ration card,Voter ID या फिर Latest Telephone bill।

Director और Partner के नाम का PAN card- कम्पनी के रजिस्ट्रीशन के लिए आपके पास Permanent Account number(PAN) का होना बहुत ही आवश्यक है। इसके बिना आप कम्पनी का रजिस्ट्रीशन करने में असमर्थ हो जाएंगे।

Digital Signature Certificate- इस Digital Signature certificate का इस्तेमाल इनटरने के द्वारा E- document submit करते समय किया जाता है। यह signature एक समान्य signature की तरह ही होता है।

Director Identification Number (DIN)- यह Identification Number Director के पास होता है। यह नम्बर लेने के लिए आपको MCA की official website पर जाके Eform DIR-3 भरना होता है। इसमे आपको अपनी details भर कर और signature कर के MCA के portal पर ही submit कर देना होता है। इस form की फीस भी होती है।

कम्पनी के लाभ-

  1. कम्पनी लंबे समय के लिये deals कर सकती हैं और बड़े projects को ले सकती हैं।
  2. कम्पनी हमेशा कुशल व्यक्तियों द्वारा ही चलाई जाती है।
  3. कम्पनी के shareholders जब चाहे तब अपने shares बहुत ही आसानी से transfer कर सकते हैं।

कम्पनी की हानि-

  1. कम्पनी के कार्यो में shareholders का कन्ट्रोल नहीं होता है। वे केवल कम्पनी की ईमानदारी पर ही निर्भर होते हैं
  2. बिज़नेस की तुलना में कम्पनी की स्थापना करना मुश्किल होता है।
  3. कम्पनी ऐक्ट के तेहेत, कम्पनी के accounts को publish करना अनिवार्य होता है।

निष्कर्ष-

तो दोस्तों ये था लेख कम्पनी क्या है (Company Meaning In Hindi) के बारे में। जिसमें आप सभी ने कम्पनी का अर्थ व परिभाषा, कम्पनी के कार्य, कम्पनी के प्राकार और आदि चीज़े जानी। एक कम्पनी की स्थापना करने से पहले आपको कम्पनी के बारे में हर छोटी और बड़ी चीज़ मालूम होनी चाहिए जो कि इस लेख में अच्छे से बताई गई है।

कम्पनी के बहुत सारे प्राकार होते हैं और सब में थोड़ा बहुत ही अन्तर होता है। इसलिए कम्पनी के प्राकार को समझ ने के लिए आप एक एक प्राकार को ध्यान से पढ़ें। आशा करते हैं कि आप को यह लेख पसंद आया होगा और कम्पनी क्या है के बारे में आपको ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी प्राप्त हुई होगी।

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