बोधिधर्मन का इतिहास व कहानी | Bodhidharma History Story in Hindi

बोधिधर्मन का इतिहास व कहानी | Bodhidharma History Story in Hindi

Bodhidharma History in Hindi :भारत में बहुत सारे ऐसे महान व्यक्ति हुए जिन्होंने दुनिया भर में अपना नाम रोशन किया है ऐसे ही एक व्यक्ति थे बोधिधर्म. लेकिन आज भी भारत के अधिकांश लोग इसके बारे में नहीं जानते हैं लेकिन आप चीन में जाकर किसी से भी पूछ लो तो वह तुरंत बता देंगे कि वह कौन थे. दोस्तों आज हम आपको इस पोस्ट में बोधिधर्म के इतिहास ( Bodhidharma history story in hindi ) के बारे में बताएंगे कि वह कौन थे कहां रहते थे और क्या करते थे. 

बोधिधर्म का इतिहास – Bodhidharma History Story in Hindi

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बोधिधार्मन कौन थे? Who is Bodhidharma in Hindi

यह कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की है जिसने दुनिया भर में तो खूब नाम कमाया लेकिन अपने ही देश भारत में इसे कोई पहचान नहीं मिली. चीन का Shaolin Temple जिसे आज पूरी दुनिया में मार्शल आर्ट सीखने के लिए सबसे अच्छी जगह माना जाता है जहां दूर-दूर से लोग कुंग फू सीखने के लिए आते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि चीन की यह कला कहां से आई. दुनिया को मार्शल आर्ट की कला देने वाले शख्स को चाइना में दामो, कोरिया में दालमा, जापान में दारूमा, थाईलैंड में ताकमो और दुनिया के कई देशों में कई अलग-अलग नामों से पूजा जाता है जिसका वास्तविक नाम बोधिधर्म है. 

बोधिधर्म की जिंदगी शुरुआत से ही साधुओं वाली नहीं थी वह किसी बौद्ध साधु के वंश भी नहीं थे असल जिंदगी में तो बोधिधर्म में एक रईस राजकुमार थे वैसे बोधिधर्म के जन्म के बारे में बहुत जानकारी नहीं है लेकिन उनका जन्म 5वी या 6वी शताब्दी में हुआ था.

इतिहासकारों के मुताबिक बोधिधर्म का जन्म दक्षिण भारत के पल्लव राज्य के एक शाही परिवार में हुआ था जोकि कांचीपुरम के धनी राजा थे सभी तरह की सारी सुविधाएं और बेशुमार दौलत होने के बावजूद भी बहुत बोधिधर्म को कोई भी राज्यशाही शौक की आदत नहीं थी. उसे सांसारिक सुखों और मोह माया से कोई लगाव नहीं था. उन्होंने बहुत कम उम्र में भी अपना राज पाठ छोड़ दिया और बौद्ध दक्षु बनने का फैसला कर लिया.

बोधिधर्म बचपन से ही बौद्ध धर्म को बहुत मानते थे बौद्ध साधुओं की सरल साधारण जीवन शैली और उनकी महान विचारों का उन पर पर गहरा प्रभाव पड़ा था. 7 साल की छोटी सी उम्र में वह अलौकिक ज्ञान की शक्ति लोगों को दिखाने लगे थे.

बौद्ध धर्म के बारे में इतिहास में अलग-अलग बातें पढ़ने को मिलती है लेकिन जो ओशो रजनी ने कहा है वह ज्यादा सत्य के नजदीक प्रतीत पड़ती है बचपन से ही बोधिधर्म को सांस लेने में परेशानी थी उस से निजात पाने के लिए बोधिधर्म ने योग विद्या का सहारा लिया ताकि सास की परेशानी से उनको आराम मिल सके. Bodhidharma Story History in Hindi

यही नहीं उन्होंने अपने जीवन की शुरुआती दिनों में लड़ने की कला भी सीखी और उसमें वह निपुण भी हो गए थे लेकिन उनका मन इन सब में नहीं लगा फिर उन्होंने पूरी तरह बौद्ध धर्म अपना लिया और साधु बन गए.

बौद्ध धर्म में गहरी रुचि होने के कारण उन्होंने गुरु महा कश्यप से ज्ञान लेना शुरू कर दिया और फिर ध्यान सीखने की कला से बौद्ध भिक्षु बनने की शुरुआत कर दी उसके बाद मेरा जैसा ही जीवन त्याग कर उन्होंने अपने गुरु के साथ ही बहुत बिग शो की तरह एक साधारण जीवन बिताना शुरू कर दिया जहां वह एक साधारण बौद्ध भिक्षुओं की तरह सरल जीवन व्यतीत करने लगे.

गौतम बुद्ध के बताए गए उपदेशों का अनुसरण करने लगे वहीं बौद्ध भिक्षु बनने से पहले उनका नाम बोधि धारा था जिसे बदलकर उन्होंने बोधिधर्म कर दिया. बोधिधर्म ने 22 साल की उम्र में ही पूर्ण ज्ञानी हो गए थे उन्होंने अपने गुरु के मार्गदर्शक से पूरे भारत में धर्म की शिक्षाओं का प्रचार प्रसार करना शुरू कर दिया. इसके बाद बोधिधर्म को महात्मा गौतम बुध की चलाई जा रही परंपराओं का 28 वा आचार्य बना दिया गया.

उनके गुरु महा कश्यप की मृत्यु के बाद बोधिधर्म ने मटको छोड़ दिया था और फिर गुरु की इच्छाओं को पूरा करने के लिए वह बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए चीन चले गए जहां उन्होंने महात्मा बुद्ध के उपदेश और उनके महान शिक्षाओं का जमकर प्रचार प्रसार किया इसके साथ ही उन्होंने चीन मैं ना सिर्फ बौद्ध धर्म की मो रखी बल्कि मार्शल आर्ट को भी एजात किया.

बोधिधर्मन और कुंग फू का इतिहास bodhidharma kung fu in hindi

Kalaripayattu दुनिया की सबसे पुरानी मार्शल आर्ट की तकनीक मानते हैं इस कला के प्रति दक्षिण भारत के केरल मैं हुई यह भी सब की पुरानी युद्ध कलाओं में से एक है यह कला सिर्फ व्यायाम और शारीरिक चुस्ती फुर्ती तक सीमित नहीं है बल्कि जीवन शैली बिताई जाती है.iयह सीखने वाले व्यक्ति को ना सिर्फ एक प्रबल योद्धा बनाती है बल्कि इसके जरिए लोग चिकित्सा की कला भी सीखते हैं यह विद्या आज भिन्न-भिन्न देशों में मार्शल आर्ट के नाम से जानी जाती है लेकिन इस आर्ट ने समय के साथ साथ अपनी कई शाखाएं बना ली है इसमें से एक है

बोधिधर्म ने किस तरह लोगों को महामारी से बचाया – bodhidharma powers in hindi

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कुंग फू एक बहुत ही अच्छी विद्या है. लेकिन यह विद्या भारत में होते हुए भी चीन जापान देशों में कैसे पहुंची. क्योंकि यदि इतिहास के पन्नों को खोल कर देखा जाए तो ऐसे तथ्य मिलते हैं जो हैरान करने वाले हैं बोधिधर्म चीन कैसे पहुंचे इसे लेकर विद्वानों ने इतिहासकारों के अलग-अलग मत है.B

बोधिधर्म के चीन जाने का असली मकसद क्या था इसके बारे में किसी को भी बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है कुछ विद्वानों और इतिहासकारों का मानना है कि इंडिया के चाइना तक के सफर में लगभग 3 साल का लंबा समय लग गया था. सफर के बाद बोधिधर्म चीन देश के nanjing नाम के गांव में पहुंचे.

जब बोधिधर्म चीन के नानजिंग गांव में पहुंचे तो उनका वहां पर बहुत अच्छा स्वागत नहीं हुआ बल्कि वहां पर पहले से रहने वाले ज्योतिष आचार्य ने भविष्यवाणी कर रखी थी कि उनके गांव में बहुत ही बड़ी परेशानी और भयंकर विपदा आने वाली है इस भयंकर विपदा से उनका पूरा गांव तबाह हो जाएगा.

जब बोधिधर्म उनके गांव में पहुंचे तो गांव के भोले भाले वासु जनता को यह लगा कि गांव में आने वाले भयंकर विपदा कोई और नहीं है बल्कि बोधिधर्म ही है गांव के लोगों ने बोधिधर्म को घास भी नहीं डाली और इतना मजबूर कर दिया कि उनको खुद गांव से निकल जाना पड़ा.

फिर बोधिधर्म गांव के पास एक जंगल में जाकर रहने लगे उनके चले जाने से गांव वाले बेफिक्र हो गए थे गांव वालों को यह लगा कि उनके जाने से वह भयंकर जो उनके गांव में आने वाली थी वह भी चली गई.

जब बोधिधर्म गांव को छोड़ कर चले गए तो वहां पर महामारी फैल गई लोगों को लग रहा था कि भयंकर बीमारी का कारण बोधिधर्म थे लेकिन यह गलत था वह भयंकर बीमारी महामारी की थी जिसने गांव में पैर पसारा. क्योंकि संकट तो एक जानलेवा महामारी के रूप में आने वाला था और वह आ गया.

लोग बीमार पड़ने लगे गांव में अफरा-तफरी मच गई. गांव के लोग बीमारी से ग्रसित बच्चों और अन्य लोगों को गांव के बाहर छोड़ देते थे ताकि किसी अन्य को यह रोग ना लगे बोधी धर्मन एक आयुर्वेदिक आचार्य थे तो उन्होंने ऐसे लोगों की मदद की और उनको मौत के मुंह से जाने से बचाया

तब गांव के लोगों को लगा कि यह व्यक्ति गांव के लिए संकट नहीं है यह तो संकट हर्ता के रूप में गांव में आया है गांव के लोगों ने तब से उनको समान और अपने गांव में शरण दी. उन्होंने गांव के समझदार लोगों को जड़ी बूटियां कूटने और पीसने के काम पर लगा दिया और इस तरह पूरे गांव को उन्होंने चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाकर गांव को महामारी से बचा लिया.

किस तरह से भारत ने प्राचीन युद्ध कला का ज्ञान चाइना को दिया

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जैसे ही महामारी का संकट खत्म हुआ उसी दौरान एक दूसरा संकट भी आ पहुंचा. कुछ समय के बाद हवाने लेटेरो की टोली ने गांव पर हमला कर दिया. गांव पर हमला कर दी. वे करूर लोगो को मारने लगे चारों और कत्लेआम मच गया.

गांव वाले लोग समझते थे कि बोधिधर्म सिर्फ चिकित्सा रात में माहिर है लेकिन उनको क्या पता था कि बोधिधर्मन एक प्रबुद्ध सम्मोहन विद चमत्कारी व्यक्ति है वे प्राचीन भारत की Kalaripayattu विद्या में पारंगत है Kalaripayattu के विद्या को आजकल मार्शल आर्ट कहा जाता है.Bodhidharma History in Hindi

मोदी धर्म ने मार्शल आर्ट के बल पर सम्मोहन के बल पर उन थी यार बंद लुटेरों को हरा दिया और उनको मांगने पर मजबूर कर दिया. गांव वालों ने बोधिधर्म को लुटेरों की उन टोली से अकेले लड़ते हुए देखा तो वह देख कर चौक गए. चीन के लोगों ने युद्ध की आज तक ऐसी आश्चर्य जनक कला नहीं देखी.B

समझ गए थे कि यह साधारण व्यक्ति नहीं है इसके बाद बोधिधर्म का समान और भी बढ़ गया. विद्वानों और इतिहासकारों का मानना है कि इस घटना के बाद बोधिधर्म ने गांव वालों को अपनी आत्मरक्षा के लिए मार्शल आर्ट की विद्या सिखाई और साथ ही उन्हें ध्यान संयम और स्वय रूप में कैसे लड़ा जाता है यह कला भी सिखाई. तो इस तरह से भारत ने अपने प्राचीन युद्ध की कला का ज्ञान चाइना को दिया.

Shaolin Temple का सफर – bodhidharma history in hindi

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जब बोधिधर्म चाइना के सबसे प्रसिद्ध Shaolin Temple में पहुंचे तो वहां पर भी उनको काफी विरोध का सामना करना पड़ा. यहां पर उन्हें भिक्षुओं ने मठ में प्रवेश करने से मना कर दिया Shaolin  मठ यानी Shaolin मंदिर में प्रवेश मना होने के बाद बोधिधर्म बिना कोई प्रतिक्रिया किए वहां से ध्यान लगाने के लिए पास के ही एक पहाड़ की गुफा में चले गए.

जिसके बाद Shaolin में मट के भिक्षुओं को लगा कि बोधिधर्म कुछ दिनों बाद इस गुफा से चले जाएंगे लेकिन बोधिधर्म ने इस गुफा को लगातार 9 साल तक दीवार की ओर मुंह करके ध्यान किया. किसी ने एक दिन उनसे पूछा कि आप हमारी तरफ पीठ करके क्यों बैठे हैं दीवार की तरफ मुंह क्यों करते हो तो बोधिधर्मन ने कहा कि मेरी आंखों में पढ़ने के योग्य होगा तो उसे मैं देखूंगा जब उसका आगमन होगा तब देखूंगा अभी नहीं. अभी दो बार देखो या तुम्हें देखो एक ही बात है.

ओशो कहते हैं कि लो साल बाद वह व्यक्ति है जिसकी प्रतिक्षा बोधिधर्म ने की थी उसने अपना एक हाथ काट कर और मोदी धर्मन की ओर रख दिया और कहा कि जल्दी से इस और मुंह करो वरना गर्दन भी काट कर रख दूंगा फिर कुछ क्षण भर भी बोधिधर्म नहीं रुके और उस व्यक्ति की और घूम गए और कहने लगे कि तुम आ गए मैं तुम्हारी ही तो प्रतीक्षा में था क्योंकि जो अपना सब कुछ मुझे देने को तैयार है वही मेरा संदेश जेल सकता है इस व्यक्ति को बोधिधर्म मैं अपना संदेश दिया जो बुद्ध ने महा कश्यप को दिया था.

इस गुफा को दामो टॉम के नाम से जाना जाता है इसका अर्थ है दामो की गुफा. कहते हैं उन्होंने गुफाओं में इतने लंबे समय तक मेडिटेशन किया जिससे कि उनकी पूरी प्रतिमा गुफा की दीवार पर बन गई यहां तक कि बोधिधर्म के कपड़ों की करीज भी साफ छप गई.

उस परछाई वाले चट्टानों को बाद में गुफा से काटकर हटा दिया गया और Shaolin मंदिर में ले जाया गया जहां उसे विस्थापित कर दिया गया आज उसी प्रतिमा की पूजा की जाती है 9 साल की तपस्या के बाद मंदिर अधिकारियों ने बोधिधर्म को Shaolin मंदिर में आने की इजाजत दी जैसे ही बोधिधर्मा मंदिर के अंदर आए तो उन्होंने देखा कि वहां पर कोई भी व्यक्ति तंदुरुस्त नहीं है इसके लिए उन्होंने तो कसरत गुफा में की थी मुनि मंदिर के लोगों को सिखाया और यही आगे चलकर मार्शल आर्ट बनी.

धीरे-धीरे यह विद्या चीन से निकलकर आसपास के देशों में भी फैल गई.

बोधिधर्म की मृत्यु कैसे हुई bodhidharma Death

बोधिधर्म की मृत्यु को लेकर विद्वानों और इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं जैसे कहीं जगह बताया जाता है जैसे 

  • बोधिधर्म को जहर दिया गया था और जहर की वजह से बोधिधर्म की मृत्यु हुई थी.
  • कहीं जगह बताया जाता है कि यह आगे बौद्ध धर्म का प्रचार करने जापान और बाकी देश में गए.
  • कई मानते हैं कि बोधिधर्म ने अपनी आखिरी सांस Shaolin मठ में ली.

My Last Word 

दोस्तों हमने आपको इस पोस्ट में बोधिधर्म के जीवन (bodhidharma full history in hindi) के बारे में बताया है कि उन्होंने अपना जीवन कैसे व्यतीत किया था अगर आपको हमारी यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें ताकि हम आपके लिए ऐसी मजेदार स्टोरी लेकर आते रहे.

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