Kamakhya Devi Temple History in Hindi। कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य

Kamakhya Devi Temple History in Hindi। कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य

Kamakhya Devi Temple History in Hindi
Kamakhya Devi Temple History in Hindi

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आज के इस लेख में आप सभी का सवागत है। आज के लेख में हम आपको एक अद्भुत मंदिर के बारे में बताने वाले है। जहां हज़ारों लोग जाते हैं और अपनी मन्नत मांगते है। उनकी मन्नत पूरी भी होती है। उस मन्दिर का नाम है Kamakhya Devi Temple।

इस लेख में आपको Kamakhya Devi Temple History in Hindi में जानने को मिलेगी और साथ ही साथ Kamakhya का क्या मतलब है,Kamakhya नाम के पीछे की वजह,Kamakhya Devi Temple की स्थापना ,Kamakhya Devi Temple कब बना था आदि चीज़ें जानेंगे।

यह मन्दिर देश के तमाम 52 शक्तिपीठों में सबसे प्रसिद्ध मन्दिरों में से एक है। और ये दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। यह मन्दिर तंत्र साधना के लिए ही जाना जाता है। इस मन्दिर की हर किसी की मनोकामना पूरी होती है। इसीलिए इसे कामाख्या का नाम दिया गया है। इस मंदिर में आज भी जानवरों की ही बलि दी जाती है।Kamakhya Devi Temple के बारें में विस्तार से जानने के लिए इस लेख को अन्त तक ज़रूर पढ़े।

Kamakhya Devi Temple History in Hindi-

हम सभी को यह पता है कि हिंदू धर्म में देवी देवताओं का बहुत ही ज़्यादा महत्व है। हिन्दुओं के बहुत सारे धार्मिक स्थल हैं जहां पर अलग-अलग तरह के चमत्कार होते रहते हैं। इन्हीं धार्मिक स्थलों में से एक Kamakhya Devi Temple है।

ऐसा माना जाता है कि यहां देवी सती का योनि गिरा था। और यह भी माना जाता है कि अपने पिता द्वारा भगवान शिव के अपमान के बाद माता सती गुससा हो गई थी और अग्नि में कूद कर अपना प्राण त्याग दिया था। उनके द्वारा प्राण त्याग करने के बाद भगवान शंकर और ज़्यादा गुस्से में आ गए और सती के शव को लेकर तांडव करने लगे थे। तभी भगवान शिव ने यह प्रण ले लिया था कि वह इस धरती को नष्ट कर देंगे।

भगवान शंकर का तांडव रूप देखने के बाद तीनों लोक में हंगामा मच गया था। किसी को यह समझ में नहीं आ रहा था कि भगवान शंकर को शांत कैसे करवाया जाए। अंत में भगवान विष्णु ने सती के शरीर को क्षत-विक्षत करने का फैसला किया और अपने चक्र से सती के शरीर के बहुत सारे टुकड़े कर दिए थे। और इन्हीं बहुत सारे टुकड़ों में से एक टुकड़ा जहां आकर गिरा वहीं आज Kamakhya Devi Temple की स्थापना है।

हमारे भारत में ऐसे बहुत सारे मन्दिर मौजूद हैं, जहां माता सती की पूजा की जाती है। और इन मन्दिरों के दर्शन का बहुत ही ज़्यादा महत्वपूर्ण है। दूर दूर से लोग यहां आते हैं और माता की पूजा करते हैं।

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Kamakhya का क्या मतलब है-

इस मन्दिर का नाम Kamakhya Devi Temple इसलिए है क्योंकि कामाख्या का अर्थ सकारात्मक भाव से जुड़ा हुआ हैं।और इसका अर्थ “इच्छाओं को पूरी करना” होता है। ऐसा माना जाता है कि कामाख्या की देवी सबकी इच्छाओं को पूरा करती हैं।

Kamakhya नाम के पीछे की वजह-

इस मंदिर का नाम कामाख्या होने के पीछे एक वजह है। ऐसा सुनने को मिलता है कि एक श्राप के चलते काम देव ने अपना पौरुष खो दिया था। जिन्हें बाद में देवी शक्ति के जननांगों और गर्भ से ही मुक्ति मिली थी। तब से इस मंदिर का नाम Kamakhya Devi Temple रख दिया गया था और तभी से इसकी पूजा भी शुरू हो गई थी।

और कुछ लोगों का यह भी कहना है कि यह वही स्थान है जहां देवी सती और भगवान शंकर के बीच प्रेम हुआ था। और संस्कृत भाषा में प्रेम को काम कहते हैं इसलिए भी इस मंदिर का नाम कामाख्या देवी रखा गया। इस मन्दिर में जून के महीने में रक्त का प्रवाह देखने को मिलता है।

Kamakhya Devi Temple की स्थापना-

Mythology के अनुसार, जब देवी सती ने यज्ञ में अपने प्राणों को त्याग कर दिया था। उसके बाद भगवान शिव ने माता सती का जला हुआ शरीर लेकर पूरे संसार में भ्रमण किया था। जिसके कारण उनका गुससा बढ़ता ही जा रहा था। तब स्थिति को संभालने के लिए श्रीहरि ने अपने सुदर्शन चक्र से माता के पार्थिव के अंगों को काटना शुरू कर दिया था। ऐसा माना जाता है कि नीलांचल पर्वत पर माता की योनि गिरी थी। उसी की वजह से वही Kamakhya Devi Temple की स्थापना हुई थी।

यह मन्दिर दिसपुर से 7 किलोमीटर की दूरी पर गुवाहाटी शहर में नीलांचल की पहाड़ियां पर स्थित हैं। गुवाहाटी को पूर्वोतर भारत का प्रवेश द्वार माना जाता हैं।

Kamakhya Devi Temple कब बना था-

Kamakhya Devi Temple 1565 में बना था। हुसैन शाह नामक इन्सान ने 1498 इस्वी में इस मंदिर को खंडर में बदल दिया था। लेकिन इस बात को कुछ लोग सही मानते हैं और कुछ लोग कहते है कि इस मंदिर को कालापहाड़ ने तोड़ा था।

जब इस मंदिर को खंडर बना दिया गया था। तो यह मिट्टी में दब चूका था। उसके बाद इस मंदिर की खोज बिहार के कोच वंश के संस्थापक विश्वसिंह ने की थी। उसके बाद ही से वहां पर पूजा अर्चना शुरू हो गई थी।

Kamakhya Devi Temple का महत्व-

  • Kamakhya Devi Temple में आपको काले जादू का समाधान मिलता है।अगर किसी पर काला
  • जादू किया गया होता है तो यहां आकर उसको इस समस्या से निजात मिल जाती है। क्योंकि Kamakhya Devi Temple के तांत्रिक और साधु चमत्कार करने में माहिर होते हैं।
  • बहुत सारे लोग विवाह, बच्चे, पैसा और बहुत सारी अन्य परेशानीयो में घिरे हुए होते हैं। तो ऐसा माना जाता है कि यह मन्दिर इन सभी समस्याओं को दूर करने में भी सक्षम है।
  • इस मन्दिर में किसी देवी की पूजा नहीं की जाती हैं। बल्कि एक योनि के भाग की पूजा की जाती हैं। जो कि कामाख्या की देवी का एक अंग हैं।

Kamakhya Devi Temple की मान्यता-

यह मंदिर असम के गुवाहटी से करीब 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थि​त है। ऐसा माना जाता है कि यहां पर माता की योनि का भाग गिरा था। और यहाँ पर हर साल भव्य अंबुबाची मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में शामिल होने के लिए तमाम श्रद्धालु, साधु संत और तांत्रिक बहुत ही दूर दूर से आते हैं। और इस मेले का हिस्सा बनते हैं। जब मेला लगता है तो हर साल पास में स्थित ब्रह्मपुत्र का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है।पानी का यह लाल रंग कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है। फिर तीन दिन के बाद दर्शन के लिए यहां भक्तों की भीड़ मंदिर में बढ़ने लगती है।

कामाख्या देवी मंदिर में प्रसाद के रूप में आपको लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है। क्योंकि वहां के लोगों का ऐसा मानना है कि जब मां को तीन दिन का रजस्वला होता है, तो सफेद रंग का कपडा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाज़े खोले जाते हैं, तब वह कपड़ा माता के रज से लाल हो जाता है। इस कपड़ें को अम्बुवाची वस्त्र कहा जाता है। इसी को भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।

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Kamakhya Devi Temple के बारें में कुछ रोचक तथ्य-

  • Kamakhya Devi Temple 3 हिस्सों के पत्थरों से बना हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि महीने में एक बार एक पत्थर से खून की धारा निकलती है।
  • इस मंदिर में प्रसाद के रूप में भक्तों को लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है। परंपरा के अनुसार माता के 3 दिन मासिक धर्म के चलते एक सफेद कपड़ा दरबार में रख दिया जाता है और 3 दिन बाद लाल रंग में भीगा हुआ कपड़ा भक्तों को दे दिया जाता है।
  • यहां हर वर्ष अम्बुवाची मेला लगता है। जिसके दौरान पास में स्थित ब्रह्मपुत्र नदी का पानी 3 दिन के लिए लाल हो जाता है।
  • Kamakhya Devi Temple के पास ही उमानंद भैरव का मंदिर है। इस मन्दिर के दर्शन के बिना Kamakhya Devi की यात्रा अधूरी मानी जाती है।
  • यह माता का शुभ मंत्र है-
    कामाख्ये कामसम्पन्ने कामेश्वरि हरप्रिये|
    कामनां देहि मे नित्यं कामेश्वरि नमोऽस्तु ते||

Kamakhya Devi Temple से जुड़े कुछ सवाल-

Q. Kamakhya Devi Temple कैसे पहुंच सकते हैं?

यह मंदिर असम की राजधानी गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। सड़क, वायु या रेलमार्ग से गुवाहाटी पहुंचकर आसानी से Kamakhya Devi Temple पहुंचा जा सकता है।

Q. Kamakhya Devi Temple का दृश्य कैसा है?

Kamakhya Devi Temple एक मधुमखी के छते के समान हैं।इसके पिलर पर हिन्दू धर्म के देवताओ की मुर्तिया उभारी गयी हैं।

Q. Kamakhya Devi Temple बंद कब रहता हैं?

Kamakhya Devi Temple हर महीने में तीन दिन के लिए बंद रहता हैं। क्योंकि इन तीन दिनों के लिए यहाँ माता का मासिक धर्म चलता हैं।

Q. Kamakhya Devi Temple में किसकी पूजा की जाती है ?

Kamakhya Devi Temple में किसी देवी की मूर्ति की पूजा नहीं की जाती हैं। बल्कि यहाँ एक योनि के भाग की पूजा की जाती हैं। जो कि कामाख्या की देवी का अंग था।

Q. ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल क्यों होता हैं ?

Kamakhya Devi Temple में जून महीने में एक मेला लगता हैं। इस मेले को अम्बुवाची के नाम से जाना जाता हैं। इस मेले के चलते पास में बहने वाली नदी का पानी लाल हो जाता हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस नदी के पानी के लाल होने के पीछे देवी का चमत्कार हैं। इसके पीछे यह भी बताया जाता है कि इन तीन दिनों तक देवी का मासिक धर्म चलता हैं।

निष्कर्ष-

आपको यह बता दे कि हिन्दुओं के बहुत सारे धार्मिक स्थल हैं जहां पर अलग-अलग तरह के चमत्कार होते रहते हैं। लेकिन Kamakhya Devi Temple को सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण और असरदार माना जाता है।

आशा करते हैं कि आप को यह लेख पसंद आया होगा और Kamakhya Devi Temple History in Hindi के बारें में आपको बहुत कुछ जानने को मिला होगा।

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