मूर्खता का फल – Panchatantra Story In Hindi With moral

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मूर्खता का फल - Panchatantra Story In Hindi With moral
Panchatantra Story In Hindi With moral

मूर्खता का फल – Panchatantra Story In Hindi With moral

एक बढ़ई था । एक बार वह लकड़ी के एक लंबे लट्ठ को आरे से चीर रहा था । उसे इस लट्टे के दो टुकड़े करने थे । सामने वाले पेड़ पर एक बदर । बैठा हुआ था । वह काफी देर से बढ़ई के काम को ध्यान से देख रहा था । बढ़इ । ने दोपहर का भोजन करने के लिए काम बंद कर दिया ।

अब तक लट्ठ का कवल आधा ही भाग चीरा जा चुका था । इसलिए उसने लट्टे के चिरे हुए हिस्से में लकड़ी की एक मोटी गुल्ली फँसा दी । इसके बाद वह खाना खाने चला गया ।

बढ़ई के जाने के बाद बंदर पेड़ से कूद कर नीचे आया । वह कुछ देर तक इधर – उधर देखता रहा । उसकी नजर लकड़ी की गुल्ली पर गड़ी हुई थी । वह गुल्ली के पास गया और उसे बड़ी उत्सुकता से देखने लगा । वह अपने दोनों पाँव लटे के दोनों ओर लटका कर उस पर बैठ गया ।

इस तरह बैठने से उसकी लंबी पूँछ लढे के चिरे हुए हिस्से में लटक रही थी । उसने बड़ी उत्सुकता से गुल्ली को हिला – डुला कर देखा फिर वह उसे जोर – जोर से हिलाने लगा । अंत में जोर लगा कर उसने गुल्ली खींच ली । ज्यों ही गुल्ली निकली कि लट्ठ के चिरे हुए दोनों हिस्से एक – दूसरे से चिपक गए ।

बंदर की पूँछ उसमें बुरी तरह से फँस गई । दर्द के मारे बंदर जोर – जोर से चिल्लाने लगा । उसे बढ़ई का डर भी सता रहा था । वह पूँछ निकालने के लिए छटपटाने लगा । उसने जोर लगा कर उछलने की कोशिश की , तो उसकी पूँछ टूट गई । अब वह बिना पूँछ का हो गया । अनजानी चीज से छेड़छाड़ करना खतरनाक होता है ।

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अनजानी चीज से छेडछाड करना खतरनाक होता है.मूर्खता का फल – Panchatantra Story In Hindi With moral  [/su_box]

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